चोल साम्राज्य (9वीं से 13वीं शताब्दी) दक्षिण भारत का एक महानतम साम्राज्य था, जिसने तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और श्रीलंका तक अपनी सत्ता का विस्तार किया। इस राजवंश ने प्रशासन, कला, वास्तुकला और नौसेना शक्ति में महान उपलब्धियां हासिल कीं।
1. चोल साम्राज्य का प्रारंभिक इतिहास (संगम काल – 3री शताब्दी ईसा पूर्व से 3री शताब्दी ईस्वी तक)
चोल वंश का उल्लेख संगम साहित्य में मिलता है।
संगम काल के प्रमुख चोल शासक कารिकाल चोल थे, जिन्होंने व्यापार और समुद्री शक्ति को बढ़ाया।
इस काल के बाद चोल शक्ति कमजोर पड़ गई।
2. चोल साम्राज्य का पुनरुत्थान (9वीं शताब्दी ईस्वी)
चोल साम्राज्य की नई शाखा 9वीं शताब्दी में उभरकर आई, जिसे राजराजी चोल वंश कहा जाता है।
प्रमुख शासक और उनकी उपलब्धियाँ:
1. विजयालय चोल (846-871 ई.)
चोल साम्राज्य का संस्थापक।
उसने पल्लवों को हराकर तंजावुर (थंजावुर) पर कब्जा किया।
2. आदित्य चोल I (871-907 ई.)
पल्लवों और पांड्यों को हराया।
चोल राज्य को मजबूत किया।
3. परांतक चोल I (907-955 ई.)
श्रीलंका के कुछ हिस्सों पर अधिकार किया।
चोल प्रशासन को संगठित किया।
3. चोल साम्राज्य का स्वर्ण युग (10वीं – 12वीं शताब्दी)
इस काल में चोल साम्राज्य अपनी चरम सीमा पर पहुँचा।
4. राजराजा चोल I (985-1014 ई.)
चोल साम्राज्य का सबसे महान शासक।
श्रीलंका पर विजय प्राप्त की और उत्तरी श्रीलंका को चोल साम्राज्य में मिला लिया।
मालदीव द्वीप समूह पर भी अधिकार किया।
बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर) का निर्माण कराया।
नौसेना को मजबूत किया और दक्षिण-पूर्व एशिया तक व्यापार बढ़ाया।
5. राजेंद्र चोल I (1014-1044 ई.)
अपने पिता राजराजा चोल की विजय नीति को जारी रखा।
गंगा नदी तक विजय अभियान किया, इसलिए ‘गंगईकोंड चोल’ कहलाए।
श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार (बर्मा), अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तक साम्राज्य बढ़ाया।
श्रीविजय साम्राज्य (इंडोनेशिया) पर भी विजय प्राप्त की।
गंगईकोंडचोलपुरम नामक नई राजधानी बसाई।
6. राजाधिराज चोल I (1044-1054 ई.)
चालुक्य साम्राज्य से युद्ध किया।
श्रीलंका पर अधिकार बनाए रखा।
7. राजेंद्र चोल II (1054-1063 ई.)
चालुक्यों को हराया और कांची पर अधिकार किया।
8. वीरराजेंद्र चोल (1063-1070 ई.)
उड़ीसा और बंगाल तक चोल प्रभाव बढ़ाया।
9. आदिराजेंद्र चोल (1070 ई.)
एक कमजोर शासक, जिसे पांड्य वंश ने पराजित किया।
4. चोल साम्राज्य का पतन (12वीं – 13वीं शताब्दी)
10. कुलोत्तुंग चोल I (1070-1122 ई.)
पांड्य और चालुक्य वंश से संघर्ष किया।
दक्षिण-पूर्व एशिया से व्यापार संबंध मजबूत किए।
11. कुलोत्तुंग चोल III (1178-1218 ई.)
इस काल में चोल साम्राज्य कमजोर पड़ गया।
पांड्य और होयसल वंश शक्तिशाली हो गए।
12. राजेंद्र चोल III (1246-1279 ई.)
अंतिम चोल शासक।
1279 ई. में पांड्य शासक ने चोल साम्राज्य को समाप्त कर दिया।
5. चोल प्रशासन और संस्कृति
1. प्रशासनिक व्यवस्था:
चोलों ने स्थानीय स्वशासन प्रणाली विकसित की।
गांवों में पंचायत प्रणाली थी।
भूमि कर प्रमुख आय का स्रोत था।
2. नौसेना शक्ति:
चोल साम्राज्य की नौसेना सबसे शक्तिशाली थी।
उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया तक समुद्री शक्ति का विस्तार किया।
3. कला और वास्तुकला:
द्रविड़ स्थापत्य शैली विकसित की।
बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर), गंगईकोंडचोलपुरम मंदिर, और ऐरावतेश्वर मंदिर प्रमुख हैं।
मंदिरों में शिलालेखों और भित्तिचित्रों का सुंदर उपयोग किया गया।
4. साहित्य और शिक्षा:
तमिल साहित्य को बढ़ावा दिया।
संस्कृत और तमिल भाषा में कई ग्रंथ लिखे गए।
नाट्यशास्त्र और तमिल महाकाव्यों का विकास हुआ।
6. चोल वंश के प्रमुख युद्ध
पल्लवों के खिलाफ युद्ध: विजयालय चोल और आदित्य चोल I ने पल्लवों को हराकर चोल साम्राज्य की स्थापना की।
पांड्य साम्राज्य के खिलाफ युद्ध: चोलों और पांड्यों के बीच लंबे समय तक संघर्ष चला।
श्रीलंका विजय: राजराजा चोल I और राजेंद्र चोल I ने श्रीलंका पर अधिकार कर लिया।
श्रीविजय साम्राज्य के खिलाफ युद्ध: राजेंद्र चोल I ने इंडोनेशिया और मलक्का पर चोल सेना भेजी।
गंगा नदी तक विजय अभियान: राजेंद्र चोल I ने उत्तर भारत तक अभियान किया और गंगा जल लेकर वापस लौटे।
7. चोल साम्राज्य का पतन
13वीं शताब्दी में पांड्य वंश ने चोलों को कमजोर कर दिया।
1279 ई. में चोल साम्राज्य पूरी तरह समाप्त हो गया।
बाद में दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हुई।
निष्कर्ष
चोल साम्राज्य दक्षिण भारत के सबसे महानतम साम्राज्यों में से एक था। उन्होंने व्यवस्थित प्रशासन, विशाल नौसेना, अद्भुत वास्तुकला और समृद्ध व्यापार के माध्यम से एक महान विरासत छोड़ी। उनकी उपलब्धियां आज भी दक्षिण भारत की संस्कृति और इतिहास में देखी जा सकती हैं।