विशेष विवाह अधिनियम के तहत दूसरे धर्म के पुरुष से शादी करने पर महिला का स्वत: पति के धर्म में परिवर्तन नहीं हो जाता। शादी के बाद भी महिला की व्यक्तिगत पहचान और धर्म बना रहता है जबतक कि वह स्वयं अपना धर्म परिर्वतन न कर ले। ये टिप्पणी गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू पुरुष से शादी करने वाली पारसी महिला के स्वत: धर्म परिवर्तन के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए की। इसके साथ ही कोर्ट ने बलसाड़ पारसी अंजुमन से पूछा है कि क्या वह याचिकाकर्ता महिला को पिता के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने की इजाजत दे सकते हैं। कोर्ट मामले पर 14 दिसंबर को फिर सुनवाई करेगा।
गुलरुख ने याचिका मे संविधान के तहत मिले बराबरी और धार्मिक आजादी के मौलिक अधिकारों के हनन की दुहाई देते हुए पारसी मान्यता के मुताबिक पिता के अंतिम संस्कार के लिए टावर आफ साइलेंस में जाने की इजाजत मांगी है। इन दलीलों पर पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश से प्रथमदृष्टया असहमति जताते हुए कहा कि अगर महिला ने विशेष विवाह अधिनियम में दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी की है तो फिर उसका धर्म स्वत: पति के धर्म में कैसे परिवर्तित हो जाएगा जब तक कि वह स्वयं धर्म परिवर्तन न करे।
हालांकि दूसरी तरफ से पारसी ट्रस्ट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि पारसी समुदाय मानता है कि व्यक्ति को धर्म के अंदर ही विवाह करना चाहिए। और धर्म के बाहर विवाह करने वाले को पारसी धर्म की मान्यताओं में हिस्सा लेने का अधिकार नहीं होता। पीठ ने उनसे कहा कि वे ट्रस्ट से निर्देश लेकर कोर्ट को बताएं कि क्या याचिकाकर्ता को पिता के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने की इजाजत दी जा सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि धर्म को बहुत ज्यादा सख्त नही होना चाहिए इससे उसमें कम लोग जुड़ते हैं धर्म की यह अवधारणा नही होती। धर्म अगर थोड़ा लचीला होगा तो उसमें ज्यादा लोग जुड़ेंगे। पीठ ने कहा कि ट्रस्ट को मामले पर मानवता की दृष्टि से और पिता व पुत्री की भावनाओं का ख्याल रखते हुए विचार करना चाहिए। सुब्रमण्यम ने निर्देश लेकर सूचित करने के लिए कोर्ट से कुछ समय मांगा कोर्ट ने अनुरोध स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई 14 दिसंबर तक के लिए टाल दी।
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